मुहावरे/कविता/लेख

मुहावरे/ कविता/ लेख

चेहरे का क्यूँ रंग उड़ा है,
क्या ग़म से चोली दामन का रिश्ता है
दीप तले तो रहता अंधेरा,
जौ के साथ घुन भी पिसता है।

कोई डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है
तो कोई लोहे के चने चबाता है
कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है
कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है
मुफलिसी में जब आटा गीला होता है
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है

आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं
कभी अंगूर खट्टे हैं
कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं
कहीं दाल में काला है
तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती है

हिंदी के मुहावरे बड़े ही बावरे हैं
खाने पीने की चीजों से भरे हैं
कहीं पर फल है तो कहीं आटा-दालें हैं
कहीं पर मिठाई है कहीं पर मसाले हैं
चलो, फलों से ही शुरू कर लेते हैं
एक-एक कर सबके मज़े लेते हैं